शुक्रवार, 25 मई 2018

चुलबुल चिड़िया

इक थी नन्ही सी  प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल  चिड़िया।
घर -आंगन में फुदक-फुदक कर ,
करती ता-ता थैया।

तिनका-तिनका  चुन  कर लाती   ,
फिर घोसला  बनाती।
अपने पंखों को फहराकर ,
अटखेलियां दिखाती। 
 मेरे घर के चौखट पर  वो ,
गीत सुनाती बढिया।
इक थी नन्ही सी  प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल  चिड़िया।

सुनती नहीं ज़रा भी मेरी ,
अपने मन की करती।
बार बार कमरे में आती ,
फुदक फुदक मन हरती।
छोटइ -छोटे पंखों वाली ,
प्यारी सी गौरैया।
इक थी नन्ही सी  प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल  चिड़िया।

तिनका ढेर कहाँ से लाती ,
सोच के थे हैरान।
दादा जी तो उस चड़िया से ,
रहते थे परेशान।
उसके वजह से बंद रखते ,
वो दरवाजे खिड़कियाँ।
 इक थी नन्ही सी  प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल  चिड़िया।

तभी अचानक बंद हो गया ,
उसका आना जाना।
तब मैंने मम्मी से पूछा ,
इसका राज बताना।
कहाँ  गयी वो किधर  गई  वो ,
गई कौन सी दुनियाँ।
इक थी नन्ही सी  प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल  चिड़िया।             

माँ गुमसुम सी  खोई -खोई,
कुछ पल नभ को देखी।
फिर धीरे धीरे से बोली ,
कोई  बात अनोखी। 
विकट स्वार्थ भरा मनुज है ,
सुन लो मेरी गुड़िया।
इक थी नन्ही सी  प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल  चिड़िया।

मनुष्यों ने प्रदूषण नामक ,
बनाया इक दरिंदा।
जिसने  छीना मुझसे मेरा ,
वो मासूम परिंदा।
घुट-घुट कर दम तोड़ दिया वो,
छोड़ गई यह गलियाँ।
 इक थी नन्ही सी  प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल  चिड़िया।

 इक थी नन्ही सी  प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल  चिड़िया।
घर -आंगन में फुदक-फुदक कर,
करती ता-ता थैया।
वेधा  सिंह
कक्षा पांचवीं

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