रविवार, 27 मई 2018

रुपयों लदा पेड़


रुपयों लदा पेड़ जो होता ,
सोचो जीवन कैसा होता।
नहीं जेब पे ताला होता ,
हर कोई पैसे वाला होता

न कोई भूखा नंगा होता ,
जीवन कितना चंगा होता,
चमक जाते भाग्य के तारे,
सपने आते न्यारे-न्यारे।

फिर ना कोई बोझा ढोता ,
अपनी किस्मत पर ना रोता।
सबके पास खजाना होता ,
तरह-तरह का खाना होता।

पापा काम पर  नहीं जाते ,
करते घर में सदा आराम।
मम्मी को करना ना पड़ता ,
 घर का कभी इतना काम।

घर में एक रोबोट होता ,
जो कर देता सब इंतजाम।
बात बात पर हर -पल मुझको ,
मिलते तरह - तरह के इनाम।

माना रुपयों में ताकत है ,
पर ज्यादा होना आफत है।
ये छल-बल और बगावत है ,
ये कई रोग का दावत है।

भवन बड़ा दिल छोटा होता ,
नीयत सबका खोटा होता।
नौकरियों में ना कोटा होता ,
खा-खा के पेट मोटा होता।

जगह-जगह घोटाला  होता ,
पल में तब मुँह काला  होता।
फिर न कोई फरिश्ता होता,
पैसों का सब रिश्ता होता।
वेधा सिंह
पांचवीं

  

शुक्रवार, 25 मई 2018

चुलबुल चिड़िया

इक थी नन्ही सी  प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल  चिड़िया।
घर -आंगन में फुदक-फुदक कर ,
करती ता-ता थैया।

तिनका-तिनका  चुन  कर लाती   ,
फिर घोसला  बनाती।
अपने पंखों को फहराकर ,
अटखेलियां दिखाती। 
 मेरे घर के चौखट पर  वो ,
गीत सुनाती बढिया।
इक थी नन्ही सी  प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल  चिड़िया।

सुनती नहीं ज़रा भी मेरी ,
अपने मन की करती।
बार बार कमरे में आती ,
फुदक फुदक मन हरती।
छोटइ -छोटे पंखों वाली ,
प्यारी सी गौरैया।
इक थी नन्ही सी  प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल  चिड़िया।

तिनका ढेर कहाँ से लाती ,
सोच के थे हैरान।
दादा जी तो उस चड़िया से ,
रहते थे परेशान।
उसके वजह से बंद रखते ,
वो दरवाजे खिड़कियाँ।
 इक थी नन्ही सी  प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल  चिड़िया।

तभी अचानक बंद हो गया ,
उसका आना जाना।
तब मैंने मम्मी से पूछा ,
इसका राज बताना।
कहाँ  गयी वो किधर  गई  वो ,
गई कौन सी दुनियाँ।
इक थी नन्ही सी  प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल  चिड़िया।             

माँ गुमसुम सी  खोई -खोई,
कुछ पल नभ को देखी।
फिर धीरे धीरे से बोली ,
कोई  बात अनोखी। 
विकट स्वार्थ भरा मनुज है ,
सुन लो मेरी गुड़िया।
इक थी नन्ही सी  प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल  चिड़िया।

मनुष्यों ने प्रदूषण नामक ,
बनाया इक दरिंदा।
जिसने  छीना मुझसे मेरा ,
वो मासूम परिंदा।
घुट-घुट कर दम तोड़ दिया वो,
छोड़ गई यह गलियाँ।
 इक थी नन्ही सी  प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल  चिड़िया।

 इक थी नन्ही सी  प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल  चिड़िया।
घर -आंगन में फुदक-फुदक कर,
करती ता-ता थैया।
वेधा  सिंह
कक्षा पांचवीं

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